शब्दों के शिल्पी : स्याही से उकेरी क्रांति की गाथा, हर शब्द में आंदोलन को समेटा

क्रांति दूत यशपाल: स्याही से उकेरी क्रांति की गाथा, हर शब्द में आंदोलन को समेटा

नई दिल्ली, 2 दिसंबर (आईएएनएस)। पंजाब के एक छोटे से कस्बे फिरोजपुर छावनी में जन्मे यशपाल शर्मा एक ऐसे इंसान थे, जिनकी जिंदगी में आग और कलम दोनों का सामंजस्य था। उनके पिता हीरालाल साधारण कारोबारी थे, पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा रूचि नहीं रखते थे, लेकिन उनकी मां ने यशपाल के भीतर विद्या और विचार की ज्वाला जलाने की ठान ली थी। वे चाहती थीं कि उनका बेटा स्वामी दयानंद के आदर्शों की तरह तेजस्वी बने, समाज और देश के लिए कुछ करे।

यशपाल की पढ़ाई घर पर शुरू हुई और फिर वे गुरुकुल कांगड़ी गए। लेकिन 14 साल की उम्र में एक गंभीर बीमारी ने उनके जीवन को झकझोर दिया। मां की चिंता और उम्मीद उन्हें लाहौर ले आई और डीएवी स्कूल में दाखिला लिया। इसी समय उनके विचार गांधीजी की स्वतंत्रता की लहर से प्रभावित होने लगे। रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह में शामिल होकर उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया।

लेकिन गांधीवाद का रास्ता उनके लिए स्थायी नहीं था। नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान वे भगत सिंह, सुखदेव और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों से मिले। तभी से उनके भीतर क्रांति की चिंगारी जल उठी। उन्होंने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया और गरम दल में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम के सबसे खतरनाक लेकिन साहसी कदम उठाए।

1929 में लाहौर बम फैक्ट्री में पकड़े जाने पर सुखदेव जेल गए और यशपाल फरार हो गए। 23 दिसंबर 1929 को उन्होंने लॉर्ड इरविन की ट्रेन पर बम फेंककर अंग्रेजों के दमन के खिलाफ साहसिक प्रदर्शन किया। जनवरी 1930 में भगवती चरण के साथ मिलकर ‘फिलॉसफी ऑफ दी बम’ लिखा। फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातंत्र सेना के कमांडर इन चीफ बन गए।

यशपाल के पोस्टर और पर्चे युवाओं में क्रांति का संदेश फैलाने लगे। लेकिन, अंग्रेज सरकार को उनकी गतिविधियां इतनी खतरनाक लगीं कि 23 जनवरी 1932 को उनके सिर पर पांच हजार रुपए का इनाम रखा गया। एक दिन पहले, इलाहाबाद में पुलिस मुठभेड़ में उन्होंने अपनी हिम्मत दिखाई, लेकिन आखिरकार गिरफ्तार हो गए। कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जेल में ही उनका विवाह प्रकाशवती से हुआ, जो खुद भी क्रांतिकारी थीं।

जेल से रिहाई के बाद यशपाल ने बम और बारूद की जगह कलम को हथियार बनाया। उन्होंने विप्लव पत्रिका शुरू की और मार्क्सवादी विचारों को आम जनता तक पहुंचाया। प्रकाशवती उनके हर कदम में सहायक बनीं। विप्लव और उसके उर्दू संस्करण बागी ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी। यशपाल की कहानियों और उपन्यासों ने समाज की हकीकत को बेबाक तरीके से सामने रखा।

उनकी लेखनी कभी न दबने वाली आवाज थी। 'पिंजरे की उड़ान,' 'वो दुनिया,' 'ज्ञानदान,' 'सिंहावलोकन,' और 'झूठा-सच' जैसी कृतियों में उन्होंने समाज के हर रंग और हर दर्द को उकेरा। उनकी कहानियों में गरीबों की पीड़ा, मजदूरों का संघर्ष और आम इंसान की जिंदगी की सच्चाई झलकती थी। यशपाल ने सिर्फ कहानी नहीं लिखी, उन्होंने विचार और आंदोलन को शब्दों में ढाला।

उनकी जिंदगी में संघर्ष और साहस का सिलसिला कभी रुका नहीं। जेलों में बिताए सालों ने उन्हें कमजोर नहीं किया, बल्कि उनके लेखन को और गहराई दी। हर गिरफ्तारी, हर कठिनाई के बाद वे नए उत्साह के साथ समाज और साहित्य में कदम रखते।

आजादी के बाद भी उन्होंने समाज की विसंगतियों, सत्ता के दुरुपयोग और आम आदमी के दर्द पर लिखना जारी रखा। उनके उपन्यास और कहानियों ने आने वाली पीढ़ियों को सोचने पर मजबूर किया। 1970 में पद्म भूषण और 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके योगदान का सम्मान थे, लेकिन यशपाल की असली विरासत उनके विचार और लेखन हैं।

--आईएएनएस

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