नई दिल्ली, 11 दिसंबर (आईएएनएस)। कपालभाति केवल एक प्राणायाम नहीं, बल्कि शरीर और मन की गहराई से सफाई करने का तरीका है। आयुर्वेद कहता है कि जब जठराग्नि यानी पाचन की अग्नि कमजोर होती है, तो रोग जन्म लेते हैं और जब अग्नि प्रबल होती है, तो शरीर अपने आप ही विकारों को जलाकर शुद्ध हो जाता है। कपालभाति इसी अग्नि को जाग्रत करने का अभ्यास है।
यह प्राणायाम पाचन तंत्र की अग्नि को बढ़ाता है, आंतों में जमे आम दोषों को बाहर निकालता है और शरीर को भीतर से हल्का, सक्रिय और संतुलित बनाता है।
आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि कपालभाति मेटाबॉलिज्म को तेज करती है, फैटी लिवर जैसी स्थितियों में मदद करती है, हार्मोन संतुलन सुधारती है और उदर क्षेत्र की जड़ता कम करती है। यह केवल सांस की गति नहीं, बल्कि निष्क्रियता को सक्रियता में बदलने की प्रक्रिया है। जब इसे रोज प्रातः खाली पेट किया जाता है, तो शरीर के भीतर का आलस्य जलता है और प्राणशक्ति प्रकाशित होती है।
कपाल का मतलब है मस्तिष्क और भाती का अर्थ है प्रकाशित करना, यानी यह प्राणायाम मस्तिष्क और शरीर को भीतर से प्रखर बनाता है। इसे करने का तरीका भी सरल है। सबसे पहले सीधे बैठें, रीढ़ और गर्दन सीधी रखें, नाक से तीव्र गति से सांस बाहर निकालें और श्वास अपने आप भीतर जाएगी। श्वास छोड़ते समय पेट को भीतर खींचें। हालांकि, हमेशा भोजन के कम से कम चार घंटे बाद अभ्यास करना चाहिए।
कपालभाति से जठराग्नि प्रबल होती है, वात-कफ दोष संतुलित होते हैं, आम दोष दूर होते हैं, पाचन सुधरता है और शरीर हल्का और ऊर्जावान बनता है। आधुनिक शोध भी इसे मेटाबॉलिज्म बढ़ाने, पेट की चर्बी घटाने, शुगर नियंत्रण में सहायक और ऑक्सीजन उपयोग क्षमता बढ़ाने वाला मानते हैं।
इसमें सावधानियां भी जरूरी हैं। गर्भावस्था, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, हर्निया या हाल की सर्जरी में योग चिकित्सक की सलाह अनिवार्य है। कपालभाति से शरीर की सफाई और मन की स्थिरता दोनों मिलती हैं।
--आईएएनएस
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