कहीं आप 'रेनॉड्स सिंड्रोम' के शिकार तो नहीं, सर्द मौसम में ध्यान देना जरूरी

Raynaud syndrome

नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)। ठंड में कइयों के हाथ-पैर अचानक बर्फ जैसे ठंडे पड़ जाते हैं, रंग बदल जाता है और कुछ समय तक कुछ महसूस ही नहीं होता है। अक्सर इसे लोग सामान्य ठंड समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह एक खास मेडिकल स्थिति भी हो सकती है, जिसे रेनॉड्स सिंड्रोम कहते हैं।

सरल भाषा में कहें तो ठंडी हवा या तनाव के कारण हाथ-पैर की छोटी रक्त नलिकाएं अचानक बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं। जैसे ही खून का बहाव कम होता है, अंगों का रंग पहले सफेद, फिर नीला और बाद में लाल हो जाता है। इस दौरान ये सुन्न पड़ जाते हैं।

यह शरीर की एक ऐसी प्रतिक्रिया है जो ठंड से खुद को बचाने के लिए होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह जरूरत से ज्यादा तीव्र हो जाती है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में इससे ज्यादा प्रभावित होती हैं, और यह समस्या प्रायः किशोरावस्था या युवावस्था में शुरू होती है। भावनात्मक तनाव भी इसका एक बड़ा कारण हो सकता है—जब मन घबराता है, शरीर की नसें सिकुड़ सकती हैं और उंगलियां ठंडी पड़ सकती हैं।

वैज्ञानिकों ने इसकी दो किस्में बताई हैं। पहली, प्राइमरी रेनॉड्स—जो अपने आप होती है और गंभीर नहीं मानी जाती। दूसरी, सेकेंड्री रेनॉड्स—जो किसी अन्य बीमारी जैसे स्क्लेरोडर्मा या ल्युपस से जुड़ी हो सकती है और कभी-कभी उंगलियों में घाव का कारण भी बन सकती है। इसलिए अगर यह अक्सर और बहुत तीव्र रूप से हो, तो डॉक्टर से जांच कराना जरूरी है।

एक महत्वपूर्ण अध्ययन (2023),लैंसेट रूमेटोलॉजी में प्रकाशित हुआ, जिसमें पाया गया कि जिन मरीजों में सेकेंड्री रेनॉड्स होता है, उनमें माइक्रोवेस्कुलर (बहुत छोटी रक्त नलिकाओं) को होने वाली क्षति जल्दी पकड़ में आ जाती है। शुरुआती पहचान से गंभीर जटिलताओं को रोका जा सकता है। एक और स्टडी, जो जर्नल ऑफ ऑटोइम्युनिटी में छपी, इस बात पर जोर देती है कि रेनॉड्स कई बार ऑटोइम्यून रोगों का पहला संकेत हो सकता है, इसलिए इसे हल्के में लेना उचित नहीं।

दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे सर्दी से बचाव के लिए हमेशा दस्ताने और गर्म मोजे पहनना, अचानक तापमान परिवर्तन से बचना, धूम्रपान छोड़ना, तनाव कम करना और ऐसी चीजों से दूर रहना जिनमें हाथों पर कंपन ज्यादा पड़ता हो। कुछ लोगों को गर्म पानी में हाथ-पैरों को डुबोना तुरंत राहत देता है। जिन मरीजों में यह अधिक गंभीर होता है, डॉक्टर ब्लड वेसल्स फैलाने वाली दवाइयां देते हैं ताकि खून का प्रवाह ठीक बना रहे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समस्या को शर्म या नजरअंदाज करने की चीज न समझें। यदि हाथ-पैर बार-बार सफेद-नीले हो रहे हों, दर्द व सुन्न-पन लंबे समय तक बना रहे या त्वचा पर घाव बनने लगें, तो यह संकेत है कि शरीर किसी बड़ी दिक्कत की ओर इशारा कर रहा है। समय पर जांच और सही देखभाल से रेनॉड्स पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है और सामान्य जीवन जिया जा सकता है।

--आईएएनएस

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