पुरी, 6 नवंबर (आईएएनएस)। ओडिशा का जगन्नाथ पुरी मंदिर भक्ति और भव्यता की एक अनोखी मिसाल है। जगन्नाथ जी को कलियुग का भगवान कहा जाता है और उनके मंदिर से जुड़ी बहुत सी रहस्यमयी और अद्भुत बातें हैं जो हर किसी को हैरान कर देती हैं। मंदिर के चारों द्वारों को लेकर भी कुछ अनोखी मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर के चारों द्वार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग को दर्शाते हैं।
सबसे पहले बात करते हैं पूर्व दिशा के द्वार की, जिसे सिंह द्वार कहा जाता है। यह मंदिर का मुख्य द्वार है और इसे मोक्ष का प्रतीक माना गया है। जब कोई भक्त इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करता है, तो ऐसा कहा जाता है कि उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसी द्वार के सामने प्रसिद्ध अरुण स्तंभ स्थित है, जिस पर भगवान सूर्य के सारथी अरुण देव की मूर्ति है। मान्यता है कि इस स्तंभ को देखने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
अब आते हैं दक्षिण दिशा के द्वार पर, जिसे अश्व द्वार या विजय द्वार कहा जाता है। प्राचीन काल में जब राजा या योद्धा युद्ध के लिए जाते थे, तो वे इसी द्वार से होकर मंदिर में प्रवेश करते थे और भगवान जगन्नाथ से विजय की कामना करते थे। इसीलिए इसे विजय का प्रतीक माना गया है। यह द्वार शक्ति, साहस और सफलता का प्रतीक है।
तीसरा द्वार है पश्चिम दिशा में स्थित हस्ति द्वार, यानी हाथी द्वार। यह द्वार समृद्धि और सुख का प्रतीक है। इस द्वार पर भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है, जो विघ्नहर्ता और समृद्धि के देवता माने जाते हैं। भक्त मानते हैं कि इस द्वार से प्रवेश करने पर जीवन में धन, ज्ञान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
अंत में आता है उत्तर दिशा का व्याघ्र द्वार, जिसे बाघ द्वार भी कहा जाता है। यह द्वार धर्म और संरक्षण का प्रतीक है। इसे भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित माना जाता है, जो अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक हैं। यह द्वार हमें सिखाता है कि धर्म की रक्षा करना ही सच्चे जीवन का उद्देश्य है।
इन चारों द्वारों के माध्यम से जगन्नाथ मंदिर जीवन के चार सिद्धांतों मोक्ष, विजय, समृद्धि और धर्म का संदेश भी देता है। यही कारण है कि जगन्नाथ मंदिर केवल एक तीर्थस्थान नहीं, बल्कि जीवन दर्शन का प्रतीक माना जाता है।
--आईएएनएस
पीआईएम/एबीएम