नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। ‘सीने में जलन आंखों में तूफान’ लेकर भला कोई मखमली आवाज में गाने कैसे गा सकता है? मगर इंडस्ट्री के सुरेश वाडेकर ऐसे ही सिंगर हैं, जिन्होंने श्रोताओं को ‘मोहब्बत है क्या चीज’ बताया तो ‘हुजूर इस कदर’ जैसे गानों के साथ बताया कि ये कभी पुराने नहीं पड़ेंगे, क्योंकि सुनने वालों के लिए ये गाने अमर बन चुके हैं। 7 अगस्त को सुरेश वाडेकर का जन्मदिन है।
वाडेकर ने हिंदी सिनेमा को कुछ ऐसे गीत दिए, जो अमर हो गए। ‘सीने में जलन, आंखों में तूफान’ से लेकर ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ तक, उनकी गायकी ने हर भाव में रंग भरा।
7 अगस्त 1955 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में जन्मे सुरेश वाडेकर ने न केवल हिंदी, बल्कि मराठी, भोजपुरी, उड़िया, कोंकणी और तमिल जैसी भाषाओं में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहराई और भावनाओं की सच्चाई का संगम है, जो उन्हें अपने समकालीन गायकों से अलग करता है।
सुरेश वाडेकर का संगीतमय सफर तब शुरू हुआ, जब वे मात्र 8 साल की उम्र में शास्त्रीय संगीत सीखने लगे। साल 1968 में 13 साल की उम्र में गुरु जियालाल वसंत की सलाह पर उन्होंने प्रयाग संगीत समिति से 'प्रभाकर' सर्टिफिकेट हासिल किया। इसके बाद, उन्होंने मुंबई के आर्य विद्या मंदिर में संगीत शिक्षक के रूप में करियर शुरू किया। असली मोड़ साल 1976 में आया, जब उन्होंने सुर-श्रृंगार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और मदन मोहन अवॉर्ड जीता। इस जीत ने उनके लिए हिंदी सिनेमा के दरवाजे खोल दिए।
साल 1977 में रवींद्र जैन ने उन्हें फिल्म ‘पहेली’ में ‘सोना करे झिलमिल’ गाने का मौका दिया, जो उनकी पहली बड़ी सफलता थी। इसके बाद सन 1978 में जयदेव के साथ फिल्म ‘गमन’ का गीत ‘सीने में जलन’ गाया, जिसने उन्हें रातोंरात मशहूर कर दिया। साल 1982 में राज कपूर की ‘प्रेम रोग’ में ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’ और ‘मैं हूं प्रेम रोगी’ जैसे गीतों ने उन्हें प्लेबैक सिंगर के रूप में पहचान दिलाई। उनकी आवाज ऋषि कपूर पर एकदम फिट बैठती थी।
उनकी आवाज ने ‘सदमा’ के ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’, ‘चांदनी’ के ‘लगी आज सावन की’, और ‘प्यार झुकता नहीं’ के ‘तुमसे मिलके’ जैसे गीतों को अमर बना दिया। मराठी सिनेमा में भी उनकी गायकी ने धूम मचाई, खासकर ‘मी सिंधुताई सपकाल’ के गीत ‘हे भास्कर क्षितिजवरी या’ के लिए उन्हें साल 2011 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
लता मंगेशकर, आशा भोसले और अनुराधा पौडवाल जैसे गायकों के साथ उनके गीत, जैसे ‘हुजूर इस कदर’ और ‘हुस्न पहाड़ों का’ आज भी श्रोताओं के दिलों में बसे हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन, विशाल भारद्वाज जैसे संगीतकारों के साथ उनकी जोड़ी ने कई यादगार गीत दिए।
सुरेश वाडेकर की निजी जिंदगी उनकी गायकी की तरह ही सादगी और गहराई से भरी है। उनके पिता कपड़ा मिल में काम करते थे और एक पहलवान भी थे। सुरेश को भी कुश्ती का शौक था और वह अखाड़ों में दंगल लड़ा करते थे। लेकिन, संगीत के प्रति उनकी लगन उन्हें एक अलग राह पर ले गई।
सुरेश ने पद्मा वाडेकर से शादी की, जो उनकी जीवनसंगिनी के साथ-साथ उनकी संगीतमय यात्रा में भी सहयोगी रही हैं। उनके साथ उनका रिश्ता गहरा और संगीत से जुड़ा हुआ है।
वाडेकर की जिंदगी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा भी है, जिसके अनुसार, माधुरी दीक्षित के परिवार वालों को उनके लिए वाडेकर जैसे लड़के की तलाश थी। सन 1990 में माधुरी के परिवार ने सुरेश के पास रिश्ता भेजा था। लेकिन, गायक ने रिश्ते को ठुकरा दिया और यह रिश्ता नहीं हो सका। बाद में एक इंटरव्यू में सुरेश ने मजाकिया अंदाज में कहा था, “माधुरी जैसी खूबसूरत लड़की का रिश्ता मैं सपने में भी मना नहीं करता।”
एक रोचक किस्सा ‘प्रेम रोग’ के गाने ‘भंवरे ने खिलाया फूल’ से जुड़ा है। सुरेश ने हुनर हाट के मंच पर साझा किया था कि इस गाने में भंवरे की आवाज उन्होंने खुद निकाली थी।
साल 2024 में उन्होंने रेडियो शो ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ लॉन्च किया, जिसमें वह अपनी संगीतमय यात्रा और अनसुने किस्से साझा करते हैं। उनकी उपलब्धियों में साल 2018 का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साल 2020 का पद्मश्री और साल 2004 का लता मंगेशकर पुरस्कार शामिल है।
--आईएएनएस
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