नई दिल्ली, 2 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के शासन तंत्र में जन-सेवा की भावना को सर्वोच्च स्थान देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) परिसर का नाम अब ‘सेवा तीर्थ’ होगा। यह नाम उस नागरिक-प्रथम नीति को दर्शाता है, जिसके मार्गदर्शक सिद्धांत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा काम किया है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत लगभग पूर्ण हो चुका यह नया परिसर न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय का केंद्र होगा, बल्कि इसमें कैबिनेट सचिवालय, नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सचिवालय और भारत हाउस भी शामिल होंगे, जहां वैश्विक नेताओं के साथ उच्चस्तरीय बैठकों का आयोजन किया जाएगा।
‘सेवा तीर्थ’ सार्वजनिक सेवा की उस पवित्र भावना का प्रतीक बनेगा, जहां प्रत्येक निर्णय राष्ट्र और 140 करोड़ नागरिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए लिया जाएगा।
देशभर में शासन से जुड़े भवनों के नामों में हो रहा परिवर्तन प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि जन-सशक्तिकरण की दिशा में एक गहन सांस्कृतिक बदलाव को दर्शाता है। राजभवनों का नया नाम ‘लोक भवन’ रखा जा रहा है, यह संदेश देते हुए कि सत्ता जनता की है और शासन जनसेवा के लिए है।
पिछले कुछ दिनों में देहरादून और नैनीताल (उत्तराखंड), तिरुवनंतपुरम (केरल), अगरतला (त्रिपुरा) और कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के राजभवनों ने भी औपचारिक रूप से लोक भवन नाम अपना लिया है। यह परिवर्तन सहज रूप से अपनाया जा रहा है और इसे व्यापक समर्थन मिल रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार ये बदलाव केवल नाम परिवर्तन नहीं हैं बल्कि भारतीय लोकतंत्र के बदलते मूल्यों को प्रतिबिंबित करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीते एक दशक में शासन व्यवस्था के हर प्रतीक में सेवा, कर्तव्य और लोक-शक्ति की भावना को प्रबलता से स्थापित किया गया है।
यह परिवर्तन सिर्फ इमारतों या मार्गों के नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शासन के मूल तंत्र में जनसहभागिता, पारदर्शिता और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की दिशा में एक बड़े विचारात्मक बदलाव का संकेत है।
‘सेवा तीर्थ’ की स्थापना के साथ भारत एक ऐसे लोकतांत्रिक युग की ओर अग्रसर है जहां सरकार केवल अधिकार का केंद्र नहीं बल्कि जनकल्याण की पवित्र सेवाभावना का प्रतीक बनेगी।
--आईएएनएस
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