नई दिल्ली, 2 नवंबर (आईएएनएस)। देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन सोमवार को 92 वर्ष के हो जाएंगे। उनका जन्म 3 नवंबर, 1933 को पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन में हुआ था। अर्थशास्त्र में योगदान के लिए उन्हें 1998 में नोबल प्राइज से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सेन की शुरुआती शिक्षा कलकत्ता (अब कोलकाता) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। इसके बाद उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में पढ़ाई की, जहां से उन्होंने बीए (1955), एमए (1959) और पीएचडी (1959) की उपाधि प्राप्त की।
उन्होंने भारत और इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र पढ़ाया, जिनमें जादवपुर विश्वविद्यालय (1956-58) और दिल्ली विश्वविद्यालय (1963-71), लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, लंदन विश्वविद्यालय (1971-77) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (1977-88) शामिल हैं।
इसके बाद वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय (1988-98) चले गए , जहां वे अर्थशास्त्र और फिलॉसफी के प्रोफेसर थे। 1998 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज का मास्टर नियुक्त किया गया, इस पद पर वे 2004 तक रहे। इसके बाद वे लामोंट विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में हार्वर्ड लौट आए।
अमर्त्य सेन को अकाल के कारण पर काम करने के लिए जाना जाता है, जिसके कारण भोजन की वास्तविक या अनुमानित कमी के प्रभावों को रोकने या सीमित करने के लिए व्यावहारिक समाधान विकसित करने में सफलता मिली।
अकाल से सेन का व्यक्तिगत जुड़ाव भी है, क्योंकि उन्होंने 1943 में बंगाल के अकाल को काफी करीब से देखा है, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे।
इस अकाल पर सेन का मानना था कि उस समय भारत में पर्याप्त खाद्य पदार्थों की आपूर्ति थी, लेकिन वितरण की समस्या थी, जो कि केवल कुछ लोगों के साथ में थी।
अपनी पुस्तक 'गरीबी और अकाल: अधिकार और अभाव पर एक निबंध (1981)' में सेन ने बताया कि अकाल के कई मामलों में खाद्य आपूर्ति में कोई खास कमी नहीं आई। इसके बजाय, कई सामाजिक और आर्थिक कारकों जैसे घटती मजदूरी, बेरोजगारी, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें और खराब खाद्य वितरण प्रणाली के कारण समाज के कुछ समूहों में भुखमरी की स्थिति पैदा हुई।
अमर्त्य सेन इस सिद्धांत ने खाद्य संकट और अकाल पर काम करने वाली सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को प्रभावित किया।
उनके विचारों ने नीति निर्माताओं को न केवल तात्कालिक समस्याओं को कम करने पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि गरीबों की खोई हुई आय की भरपाई के तरीके खोजने के लिए भी प्रेरित किया।
इसके अतिरिक्त सेन का मानना है कि आर्थिक विकास तभी प्रभावी होता है, जब शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में सुधार हो।
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