गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान है आयुर्वेद, जानें क्या करें, क्या नहीं

Ayurvedic upay

नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। मातृत्व जीवन की सबसे खूबसूरत यात्रा में से एक है। हालांकि, गर्भावस्था का समय बेहद संवेदनशील होता है। इसमें मां और शिशु दोनों के खास ख्याल रखने की जरुरत होती है। आयुर्वेद बताता है कि इस दौरान सही आहार, उचित दिनचर्या और सकारात्मकता से न सिर्फ मां स्वस्थ रहती है, बल्कि शिशु का भी पूरा विकास होता है।

आयुर्वेद इन नौ महीनों को 'गर्भसंस्कार' का सबसे महत्वपूर्ण समय मानता है। गर्भवती महिला जो खाती-पीती है, सोचती है और महसूस करती है, उसका सीधा असर शिशु के शारीरिक-मानसिक विकास पर पड़ता है। इसलिए इन नौ महीनों में स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से मां स्वस्थ रहती है और शिशु बुद्धिमान, बलवान एवं निरोगी जन्म लेता है। आयुर्वेद में विस्तार से बताया गया है कि गर्भावस्था में क्या करें और क्या न करें।

गर्भवती महिलाओं को हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक आहार लेना चाहिए। रात में जल्दी सोने के साथ ही दिन में पर्याप्त विश्राम करना चाहिए। खुद को हमेशा प्रसन्न और सकारात्मक रखना चाहिए। इसके लिए अच्छी किताबें पढ़ें, मधुर संगीत सुनें और स्वस्थ मनोरंजन करना चाहिए। हल्का घरेलू काम, टहलना, गर्भावस्था योग और प्राणायाम भी जरूर करना चाहिए।

गर्भावस्था में क्या न करें? इसके बारे में भी आयुर्वेद बताता है। भारी काम, अधिक परिश्रम और लंबे समय तक खड़े नहीं रहना चाहिए। उबड़-खाबड़ रास्तों पर लंबी यात्रा से परहेज करें। ज्यादा मसालेदार, तला-भुना, बासी या गरम तासीर वाले भोजन न करें। देर रात तक जागना, क्रोध, चिंता और तनाव मां के साथ ही शिशु के लिए भी हानिकारक है।

आयुर्वेद में गर्भिणी के लिए मधुर या मीठा, स्निग्ध (चिकना) और वृंहण (पोषण करने वाला) आहार बताया गया है। रोजाना ताजा गाय का दूध, घर का मक्खन, देसी घी और हल्का नॉनवेज (यदि शाकाहारी न हों) लेना लाभकारी है। शतावरी, अश्वगंधा, बालामूल, ब्राह्मी जैसी जड़ी-बूटियां चिकित्सक की सलाह से लें।

मौसम के अनुसार स्नान के पानी में बिल्व पत्र, दालचीनी, एरण्ड की पत्तियां समेत सुझाए अन्य जड़ी-बूटियां डालकर स्नान करें। इससे त्वचा और मन दोनों शांत रहते हैं। इसके अलावा नियमित रूप से स्त्री रोग विशेषज्ञ और आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में जांच कराएं।

--आईएएनएस

एमटी/एएस