नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। हिंदू धर्म में भगवान शिव की महिमा का बखान सबसे ज्यादा किया है। जिनका न कोई आदि न अंत है। पंचभूत तत्व जिनके अधीन हैं, वे भगवान शिव हैं। भगवान शिव का ऐसा ही चमत्कारी मंदिर तमिलनाडु में स्थित है, जो पांच तत्वों में से एक तत्व पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है।
तमिलनाडु के कांचीपुरम में बना एकम्बरेश्वर मंदिर आस्था और चमत्कारों के लिए जाना जाता है। भक्त मंदिर में भगवान शिव की अराधना के लिए दूर-दूर से आते हैं। मंदिर में भगवान शिव एकम्बरेश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और उनकी पत्नी यानी मां पार्वती एलावार्कुझाली के रूप में विराजमान हैं।
एकम्बरेश्वर भारत के सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।
यह कांचीपुरम के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। मंदिर परिसर 40 एकड़ में फैला है। मंदिर में एक हजार स्तंभों वाला अयिरम काल मंडपम भी बना है, जिसकी दीवारों पर भगवान शिव की अलग-अलग प्रतिमाओं को उकेरा गया है। दीवारों पर 1008 शिवलिंगों की शृंखला बनी है, जो देखने में अद्भुत लगती है। इस मंडपम का निर्माण विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय ने कराया था।
एकम्बरेश्वर मंदिर मां पार्वती के भगवान शिव के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। माना जाता है कि भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने आम के पेड़ के नीचे कड़ी तपस्या की थी। अब भगवान शिव ने मां पार्वती की परीक्षा लेने की सोची और आम के पेड़ को भस्म कर दिया, जिससे बचने के लिए मां पार्वती ने भगवान विष्णु से मदद मांगी।
भगवान विष्णु ने मां पार्वती की मदद की और पेड़ को भी सुरक्षित बचा लिया, जिसके बाद भगवान शिव ने मां गंगा को उन्हें डुबोने के लिए भेजा, लेकिन मां पार्वती और मां गंगा बहनें हैं। ऐसे में मां पार्वती ने उन्हें भी वापस भेज दिया। भगवान शिव मां पार्वती के इतने दृढ़ निश्चय को देखकर प्रसन्न हुए और मानव रूप में अवतरित होकर उनसे विवाह किया था।
जिस पेड़ के नीचे मां पार्वती ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी, भक्त उसे चमत्कारी पेड़ मानते हैं। भक्तों का मानना है कि जो भी निसंतान दंपति इस आम के पेड़ की पूजा करते हैं। उन्हें गुणी संतान की प्राप्ति होती है।
बताया जाता है कि आम का पेड़ 3500 साल से भी ज्यादा पुराना है और आज भी पेड़ पर चार प्रकार के आम लगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह चारों वेदों का प्रतीक है।
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