नायक हो या खलनायक, हर किरदार में कमाल थे सिने जगत के ‘कमल’, रणबीर कपूर से भी है खास रिश्ता

नायक हो या खलनायक, हर किरदार में कमाल थे सिने जगत के ‘कमल’, रणबीर कपूर से भी है खास रिश्ता

मुंबई, 1 अगस्त (आईएएनएस)। 'डॉन' का 'नारंग' हो या 'दीवार' का 'आनंद वर्मा', भूरी आंखों वाले खलनायक को पर्दे पर देख दर्शक वाह-वाह कर उठते थे। बात हो रही है कमल किशोर कपूर की। 2 अगस्त 2010 को हिंदी सिनेमा ने इस दमदार सितारे को खो दिया, जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से किरदारों को पर्दे पर अमर कर दिया। अभिनेता कमल कपूर की शनिवार को पुण्यतिथि है।

सिने प्रेमी उन्हें उनके शानदार अभिनय और व्यक्तिगत जीवन के लिए भी याद करते हैं। पृथ्वीराज कपूर के मौसेरे भाई और सोनाली बेंद्रे के नाना ससुर कमल कपूर का रणबीर कपूर, करिश्मा और करीना कपूर से भी खास रिश्ता था।

कपूर खानदान पर एक किताब लिखी गई है, जिसका नाम है 'द कपूर्स- द फर्स्ट फैमिली ऑफ बॉलीवुड', यह किताब लेखिका मधु जैन ने लिखी है। किताब में कमल कपूर का भी जिक्र मिलता है।

कमल कपूर का जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान) में हुआ था, लेकिन भारत के बंटवारे के बाद उनका परिवार मुंबई आ गया। यहीं से उनकी सिनेमाई यात्रा शुरू हुई, जो करीब पांच दशकों तक चली। उन्होंने 500 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें हिंदी के साथ-साथ गुजराती और पंजाबी सिनेमा भी शामिल है। कमल ने अपने करियर की शुरुआत बतौर हीरो की, लेकिन उनकी असली पहचान तब बनी, जब उन्होंने नकारात्मक किरदारों को अपनाया। उनके खलनायक वाले रोल इतने प्रभावशाली थे कि दर्शक उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते थे।

‘डॉन’, ‘आदमी और इंसान’ जैसी फिल्मों में उनके किरदार आज भी याद किए जाते हैं। कमल कपूर को पहला बड़ा ब्रेक उनके मौसेरे भाई पृथ्वीराज कपूर ने दिया था। साल 1944 में पृथ्वीराज ने अपने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की थी। इस दौरान कमल को मशहूर नाटक ‘दीवार’ में एक अंग्रेज ऑफिसर का किरदार निभाने का मौका मिला। यह रोल उनके लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। पृथ्वीराज के मार्गदर्शन में कमल ने अभिनय की बारीकियां सीखी और जल्द ही फिल्मों में अपनी जगह बनाई।

साल 1946 में आई 'दूर चलें' फिल्म से करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता ने अभिनय जगत में खास मुकाम हासिल किया। उन्होंने 40 और 50 के दशक में हीरो वाले रोल से हिंदी सिनेमा में अपने सफर की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें काम मिलना बंद हो गया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद बताया था कि काम न मिलने और बची-खुची फिल्मों के भी फ्लॉप होने से वह सड़क पर आ गए थे। करियर डगमगा गया था, जिससे वह निराश हो गए थे।

इसके बाद उन्होंने कई फिल्में बनाने के बारे में भी विचार किया और साल 1951 में 'कश्मीर' नाम की एक फिल्म बनाई जो फ्लॉप रही। उन्होंने बताया था कि उनका करियर दिशाहीन हो गया था और कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। उन्हें अपनी कार तक बेचनी पड़ गई थी। उन्होंने फिल्मों में नकारात्मक किरदार निभाने की राह पकड़ी। उनका यह आखिरी दांव काम कर गया और वह विलेन बनकर छा गए। भूरी आंखों वाले खलनायक को पर्दे पर देख दर्शक वाह-वाह कर उठते थे। फिल्म की सफलता की एक वजह कमल का दमदार किरदार भी बन जाता था।

कमल कपूर के खलनायक करियर की शुरुआत साल 1965 में रिलीज हुई फिल्म 'जौहर महमूद इन गोवा' से हुई। यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई और इस तरह कमल कपूर के बुरे दौर का अंत हो गया। जल्द ही उनके पास काम की बाढ़ आ गई और उन्हें 'जौहर इन बॉम्बे', 'जब जब फूल खिले', 'राजा और रंक', 'दस्तक', 'पाकीजा', 'पापी', 'चोर मचाए शोर', 'फाइव राइफल्स', 'दो जासूस', 'खेल खेल में', 'मर्द', 'तूफान' जैसी फिल्मों में अलग-अलग किरदार में अपनी शानदार छाप छोड़ी।

कमल कपूर का निजी जीवन भी उनकी फिल्मी दुनिया जितना ही रोचक था। उनकी बेटी का विवाह मशहूर फिल्म निर्माता रमेश बहल से हुआ, जिनके बेटे गोल्डी बहल आज बॉलीवुड के जाने-माने निर्माता-निर्देशक हैं। गोल्डी का विवाह अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे से हुआ, जिससे कमल कपूर सोनाली के नाना ससुर बने। इस तरह, उनका परिवार बॉलीवुड के कई बड़े नामों से जुड़ा। वह रिश्ते में रणबीर कपूर, करिश्मा कपूर और करीना कपूर के परदादा हुए।

कमल की सादगी और समर्पण ने उन्हें सहकर्मियों और परिवार में सम्मान दिलाया। कमल कपूर का अभिनय केवल पर्दे तक सीमित नहीं था। वे अपने किरदारों में ऐसी जान डालते थे कि दर्शकों को लगता था कि वे असल जिंदगी में भी वैसे ही हैं। उनकी भारी आवाज, प्रभावशाली व्यक्तित्व और भावनाओं को व्यक्त करने की कला ने उन्हें हर दौर में प्रासंगिक बनाए रखा। चाहे वह खलनायक की क्रूरता हो या नायक की सज्जनता, कमल हर रोल में फिट बैठते थे।

--आईएएनएस

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