चेतेश्वर पुजारा: टेस्ट क्रिकेट की 'अंतिम दीवार'

चेतेश्वर पुजारा: टेस्ट क्रिकेट की 'अंतिम दीवार'

नई दिल्ली, 24 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय क्रिकेट के उस दौर में जब चौकों-छक्कों की बरसात और तेज रफ्तार स्ट्राइक रेट की चमक सबसे बड़ी कसौटी मानी जाने लगी, तब एक बल्लेबाज ने अपनी तकनीक, संयम और धैर्य से अलग ही पहचान बनाई। वह बल्लेबाज थे चेतेश्वर पुजारा, जिन्होंने रविवार को क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी है। इस संन्यास के साथ ही क्रिकेट ने अपने बीच से एक ऐसा किरदार खो दिया जो क्लासिक टेस्ट क्रिकेट का सच्चा प्रतिनिधि था।

पुजारा टेस्ट क्रिकेट के उस 'ओल्ड स्कूल' से निकले खिलाड़ी थे, जिसे राहुल द्रविड़ ने अपने बल्ले से गढ़ा था। अगर द्रविड़ ‘दीवार’ कहलाए, तो पुजारा उस दीवार की मजबूत ईंट बनकर सामने आए। उन्होंने अपने पूरे करियर में टीम के लिए जिम्मेदारी का बोझ बिना शिकायत उठाया और विषम से विषम परिस्थितियों में डटे रहे।

उनकी सबसे बड़ी ताकत थी गेंदबाजों की धार कुंद कर देना। नई गेंद हो या पुरानी, तेज रफ्तार गेंदबाज हों या फिर उछालभरी पिचें, पुजारा ने हर चुनौती को अपने धैर्य और तकनीक से मात दी।

भारतीय क्रिकेट इतिहास का एक गोल्डन चैप्टर है जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी ही जमीन पर पहली बार हराया था। उस ऐतिहासिक जीत के सबसे चमकदार नायक पुजारा रहे। उन्होंने गेंदबाजों को इस कदर थकाया कि कप्तान विराट कोहली ने उन्हें ‘व्हाइट वॉकर’ कहकर पुकारा था। सच भी है, वह मानो किसी और ही धातु के बने बल्लेबाज लगते थे, जिन्हें ना थकाया जा सकता था और ना ही डराया।

भारतीय क्रिकेट टीम ने जब ऑस्ट्रेलिया को उसके ही घर में पहली बार हराया, तब पुजारा ने टेस्ट बल्लेबाज के मानों नए मानक स्थापित कर दिए थे। लेकिन पुजारा का सबसे बड़ा इम्तिहान 2020-21 की बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी बनी। एडिलेड टेस्ट में जब भारतीय टीम 36 रन पर ढेर हो गई, कप्तान कोहली स्वदेश लौट गए और एक-एक कर खिलाड़ी चोटिल होते चले गए, तब पुजारा युवा और अनुभवहीन टीम के बीच चट्टान की तरह खड़े रहे। जब बल्ले से रन बनाना मुश्किल था और ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों का मनोबल बहुत ऊंचा था, तब पुजारा वास्तविक दीवार की तरह कंगारू अटैक के सामने मौजूद थे। उन्होंने मानों अपने शरीर को भी ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की तेज और चोटिल करने वाली गेंदों के हवाले कर दिया, लेकिन विकेट नहीं गिरने दिया।

गाबा टेस्ट इसका चरम उदाहरण रहा। 211 गेंदों पर 56 रन की पारी स्कोरकार्ड पर भले मामूली लगे, लेकिन उसके पीछे छिपा साहस और धैर्य अविस्मरणीय है। उस पारी में पुजारा को 10 से ज्यादा बार गेंदों ने सीधे शरीर पर चोट पहुंचाई, फिर भी वह क्रीज से हिले नहीं। यह केवल बल्लेबाजी नहीं थी, यह था देश के लिए ‘लास्ट मैन स्टैंडिंग’ का जज्बा। नतीजा वही हुआ जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी, भारत ने गाबा का किला फतह किया और पूरी सीरीज अपने नाम की।

चेतेश्वर पुजारा का करियर केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है। यह मानसिक दृढ़ता, खेल भावना और देशभक्ति का प्रतीक है। सफेद गेंद के खेल में उन्हें कभी खास तवज्जो नहीं मिली, लेकिन उनके लिए क्रिकेट केवल रन बनाना भर नहीं था, बल्कि टीम को संभालना, उसे सुरक्षित रखना और जीत की नींव डालना था।

पुजारा के संन्यास के साथ एक युग का अंत भी हो रहा है। वह शायद आधुनिक क्रिकेट के आखिरी ऐसे बल्लेबाज थे जिन्होंने यह साबित किया कि टेस्ट क्रिकेट केवल खेल नहीं, बल्कि धैर्य, साहस और आत्मसंयम की चरम परीक्षा है।

--आईएएनएस

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