बिना यात्रा के भी हो सकता है ‘इंटरनल जेट लैग' से डिप्रेशन का खतरा: शोध

Internal jet lag

नई दिल्ली, 20 जुलाई (आईएएनएस)। जेट लैग, जो आमतौर पर लंबी उड़ानों के बाद होता है, एक नींद का विकार है, जो थकान और पाचन समस्याएं पैदा करता है। यह शरीर की इंटरनल बायोलॉजिकल क्लॉक, यानी सर्कैडियन रिदम के नए समय क्षेत्र के साथ तालमेल न बैठने से होता है। लेकिन, सिडनी विश्वविद्यालय के एक नए शोध ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि बिना यात्रा किए भी ‘इंटरनल जेट लैग’ की समस्या हो सकती है, जो डिप्रेशन और अन्य मानसिक समस्याओं की वजह बन सकती है।

सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जोआन कारपेंटर ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया के उन युवाओं पर अध्ययन किया गया जो मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आए थे। हैरानी की बात यह थी कि इनमें से कुछ लोगों में जेट लैग जैसे लक्षण दिखे, जबकि उन्होंने कोई यात्रा नहीं की थी। शोध में शरीर के तापमान, कोर्टिसोल और मेलाटोनिन स्तरों का विश्लेषण किया गया, जो सर्कैडियन रिदम को नियंत्रित करते हैं। यह रिदम नींद और जागने जैसे 24 घंटे के सर्कल को संचालित करता है।

अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपे एक लेख के अनुसार, मानव शरीर की सर्कैडियन रिदम नींद और जागने के चक्र को नियंत्रित करती है, जो मेलाटोनिन और शरीर के तापमान से प्रभावित होती है। रात में मंद प्रकाश मेलाटोनिन बढ़ाता है, जिससे नींद आती है, और तापमान कम होने से सतर्कता घटती है। सुबह मेलाटोनिन कम होता है, तापमान बढ़ता है, जिससे जागृति बढ़ती है। उज्ज्वल प्रकाश इस चक्र को संशोधित करता है, लेकिन हवाई यात्रा से समय क्षेत्र बदलने पर यह रिदम तुरंत नहीं बदलता। इससे जेट लैग होता है, जिसके लक्षणों में दिन में नींद, मूड बदलाव, पाचन समस्याएं और अनिद्रा शामिल हैं।

अध्ययन में पाया गया कि 23 प्रतिशत मरीजों में ‘इंटरनल जेट लैग’ था, यानी उनकी बायोलॉजिकल क्लॉक में गड़बड़ी थी। यह स्थिति डिप्रेशन, मेनिया या बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक समस्याओं से जुड़ी हो सकती है। डिप्रेशन में लगातार उदासी, मेनिया में अत्यधिक खुशी और बाइपोलर डिसऑर्डर में दोनों का मिश्रण देखा जाता है।

शोध के अनुसार, सर्कैडियन रिदम में गड़बड़ी इन डिसऑर्डर को बढ़ा सकती है। यह खोज मानसिक स्वास्थ्य के इलाज में नई दिशा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मूड डिसऑर्डर के उपचार में बायोलॉजिकल क्लॉक को ठीक करना जरूरी है। इसके लिए लाइट थेरेपी, नियमित नींद का समय और मेलाटोनिन सप्लीमेंट जैसे उपाय मददगार हो सकते हैं। युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते मामलों के बीच यह शोध बड़ी मदद कर सकती है।

--आईएएनएस

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