नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने गुरुवार को '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' कार्यक्रम में हिंदू राष्ट्र पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र है।
मोहन भागवत ने कहा कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं करना है, वह पहले से है। ऋषियों और मुनियों ने उसको राष्ट्र घोषित कर दिया है। हिंदू शब्द आजकल करते हैं। वह किसी अधिकृत घोषणा का मोहताज नहीं है। वह एक सत्य है।
उन्होंने आगे कहा कि मानने से आपका लाभ है और न मानने से आपका नुकसान है। आजमा कर देख सकते हैं।
संघ के विश्व दृष्टिकोण पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए भागवत ने उस साझा सांस्कृतिक विरासत को रेखांकित किया, जो विभिन्न धर्मों के भारतीयों को एक सूत्र में बांधती है।
उन्होंने कहा, "मुसलमान और ईसाई हमारे अतीत और साझा संस्कृति की साझी चेतना से जुड़ेंगे। हम मुसलमान हो सकते हैं, हम ईसाई हो सकते हैं, लेकिन हम यूरोपीय नहीं हैं, अरब या तुर्क नहीं हैं, हम भारतीय हैं।"
उन्होंने अखंड भारत के विचार पर बात करते हुए तर्क दिया कि यह अवधारणा केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सभ्यतागत है।
भागवत ने कहा कि जब अखंड भारत अस्तित्व में था, तब यहां अनेक शासक थे, तब भी, किसी शासक को प्रवेश करने या यात्रा करने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती थी, लेकिन उस भूमि की जनता उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम, कहीं भी स्वतंत्र रूप से आ-जा सकती थी, कहीं भी रह सकती थी, अपनी आजीविका कमा सकती थी, और कहीं भी खा सकती थी।
उन्होंने आगे कहा कि अगर विदेशी धन सेवा कार्यों के लिए आता है तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसका इस्तेमाल उसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए। समस्या तब पैदा होती है, जब इस धन का इस्तेमाल धर्मांतरण के लिए किया जाता है, इसलिए प्रतिबंध जरूरी हो जाते हैं।
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