नई दिल्ली, 5 नवंबर (आईएएनएस)। मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि गुरुवार को मासिक कार्तिगाई है। यह पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका और तमिल बहुल क्षेत्रों में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण, कूर्म पुराण और स्कंद पुराण में प्रचलित एक कथा के अनुसार, सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था। भगवान शिव अनंत ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। आकाशवाणी हुई, जो इसका आदि या अंत ढूंढ लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ होगा।
इसके बाद भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पाताल लोक जाना शुरू किया, तो ब्रह्मा जी हंस रूप में आकाश की ऊंचाइयों में उड़ते गए, जिसके बाद कहा जाता है कि युग बीत गए, लेकिन दोनों इस कार्य में असफल रहे। आखिर में विष्णु भगवान सत्य स्वीकार कर लौट आए और ब्रह्मा जी ने केतकी फूल से झूठी गवाही दी कि उन्होंने अंत देख लिया।
शिवजी ने क्रोधित होकर प्रचंड रूप धारण किया, जिससे पूरी धरती में हाहाकार मच गया, जिसके बाद देवताओं द्वारा क्षमा याचना करने पर यह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हो गई। कहते हैं यहीं से शिवरात्रि का त्योहार मनाना भी आरंभ हुआ। इस कथा से कार्तिगाई दीपम दीपकों का महत्व जुड़ा, जो शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक हैं।
एक अन्य कथा और भी प्रचलित है, जो भगवान मुरुगन से जुड़ी है। इस प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान कार्तिकेय को छह कृतिका नक्षत्रों की देवियों ने छह अलग-अलग शिशुओं के रूप में पाला-पोसा है और देवी पार्वती ने इन छह रूपों को एक सुंदर बालक में बदल दिया। यह बालक ही मुरुगन बने, जो शक्ति और विजय के देवता हैं।
कहते हैं कि इसके बाद से ही तमिल समुदाय में कार्तिगाई उत्सव मनाया जाने लगा। इस दिन दीप जलाकर मुरुगन की पूजा की जाती है, जो जीवन की बाधाओं को दूर करने वाली बताई जाती है।
तमिल संस्कृति में यह पर्व दीपावली की तरह है। मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण होता है।
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