भागवत ने स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भूमिका पर डाला प्रकाश, डॉ. हेडगेवार की भागीदारी का किया जिक्र

भागवत ने स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भूमिका पर डाला प्रकाश, डॉ. हेडगेवार की भागीदारी का किया जिक्र

नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में संगठन के ऐतिहासिक योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने लंबे समय से चल रहे गैर-भागीदारी और उग्रवाद के आरोपों को 'झूठा' और 'मूर्खतापूर्ण' बताया।

आरएसएस को मिलिटेंट ग्रुप क्यों कहा जाता है? और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी कथित अनुपस्थिति के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए भागवत ने कहा कि संघ के अहिंसक सिद्धांतों ने इसे पूरे भारत में 75 लाख से ज्यादा सदस्यों तक पहुंचाया है।

भागवत ने कहा, "झूठे आरोपों का पर्दाफाश हो गया है। कोई भी संगठन जो हिंसा अपनाता है, 75 लाख भारतीयों तक नहीं पहुंच सकता है।" उन्होंने आरएसएस की स्थायी उपस्थिति की तुलना एक पुरानी मुद्रा से की, जो शांतिपूर्ण तरीकों से अपना मूल्य बनाए रखती है। उन्होंने आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में साख पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार एक स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें दो बार जेल हुई और उन्होंने विदर्भ में आंदोलन का नेतृत्व भी किया था। उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में हेडगेवार की भागीदारी का उल्लेख किया, जिसमें ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिरोध को प्रेरित करने के लिए उस युग के देशभक्ति गीत 'पत्थर सारे बम बनेंगे...' का गायन भी शामिल था।

भागवत ने आरएसएस की भागीदारी के विशिष्ट उदाहरणों का उल्लेख किया, विशेष रूप से 1942 के दौरान महाराष्ट्र के अष्टी और चिमूर में हुए विद्रोहों में, जहां क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

उन्होंने कहा, "11 लोग थे; उनमें से सात संघ से थे।" हालांकि, आरएसएस ने सार्वजनिक श्रेय लेने से परहेज किया। भागवत ने स्पष्ट किया, "संगठन का सदस्य होने के नाते, संघ ने सार्वजनिक रूप से भाग नहीं लिया, लेकिन व्यापक रूप से समर्थन किया है।" उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वालों को पर्दे के पीछे से सहायता प्रदान करने की आरएसएस की रणनीति पर जोर दिया।

भागवत ने राकेश सिन्हा की पुस्तक 'हेडगेवार चरित्र' पढ़ने की सलाह दी, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भागीदारी का वर्णन है।

उन्होंने आगे कहा, "संघ हमेशा सामाजिक आंदोलनों की वकालत करता है। हम किसी भी सामाजिक आंदोलन का समर्थन करते हैं और उसमें भाग लेते हैं, लेकिन हम उसका श्रेय नहीं लेते। सभी आरएसएस कार्यकर्ताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अच्छे कार्यों में उनका साथ दें, और वे ऐसा करते भी हैं।"

वर्तमान की बात करते हुए, भागवत ने कहा, "हम अब समग्र विकास चाहते हैं।" उन्होंने आरएसएस की मुख्य उपलब्धि को 'अच्छे काम करने वाले कार्यकर्ताओं का निर्माण' बताया और कहा कि संघ तब तक नहीं रुकेगा, जब तक उसका मिशन पूरा नहीं हो जाता।

मोहन भागवत ने कहा कि संघ ने विभाजन का विरोध क्यों नहीं किया? एच. वी. शेषाद्रि की एक किताब है, 'द ट्रैजिक स्टोरी ऑफ पार्टिशन', आप सभी को इसे पढ़ना चाहिए। यह बताती है कि विभाजन कैसे हुआ, इसे कैसे रोका जा सकता था और किसने क्या भूमिका निभाई। उस किताब को पढ़ने से आपको इस पर संघ के रुख की स्पष्ट समझ हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि संघ ने विरोध किया था, लेकिन उस समय संघ की क्या ताकत थी। पूरा देश महात्मा गांधी के पीछे था। विभाजन पर पहले महात्मा गांधी ने सहमति नहीं दी थी, लेकिन बाद में वे भी मान गए। भारत अखंड है, और यह एक सत्य है।

--आईएएनएस

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