बास्केटबॉल: स्कूली बच्चों को चोट से बचाने के लिए ईजाद हुआ खेल, जो ओलंपिक का हिस्सा बना

बास्केटबॉल: स्कूली बच्चों को चोट से बचाने के लिए ईजाद हुआ खेल, जो ओलंपिक का हिस्सा बना

नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। फुर्ती, रणनीति, तालमेल और शारीरिक फिटनेस पर आधारित लोकप्रिय खेल 'बास्केटबॉल' ने ओलंपिक तक अपनी धाक जमा रखी है। ड्रिब्लिंग और पासिंग के इस खेल में एक टीम दूसरी टीम की रिंग में बास्केटबॉल को डालकर अंक बनाती है।

इस खेल का ईजाद साल 1891 में हुआ। कनाडा में कड़ाके की सर्दियों के बीच छात्रों को सक्रिय रखने के लिए जेम्स नाइस्मिथ ने मैसाचुसेट्स के स्प्रिंगफील्ड वाईएमसीए ट्रेनिंग स्कूल में एक ऐसा इनडोर खेल तैयार किया, जिसमें चोट की आशंका न हो।

जेम्स नाइस्मिथ ने क्लास को दो टीमों में बांटा। उन्होंने फर्श से करीब 10 फीट ऊपर बालकनी पर दो टोकरियां टांग दी। छात्रों से कहा गया कि अगर वह सॉकर बॉल को टोकरी में डाल देते हैं, तो इसे गोल माना जाएगा। हालांकि, उस वक्त ड्रिबलिंग इस खेल का हिस्सा नहीं थी। उस समय इस खेल के लिए 13 नियम भी बनाए गए थे, जिन्हें कॉलेज पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।

गेंद को हाथ में लेकर दौड़ना मना था। ऐसे में ड्रिबलिंग की तकनीक 1800 के दशक के उत्तरार्ध में आई, जिसने खिलाड़ियों को गेंद की गति पर नियंत्रण बनाते हुए उसे आगे बढ़ाने का मौका दिया। येल यूनिवर्सिटी ने साल 1897 में इस खेल में पहली बार 'ड्रिबलिंग' का इस्तेमाल किया, जिसने इस खेल में क्रांति ला दी।

विश्व युद्ध के दौरान सैनिक अपने मनोरंजन के लिए इसे खेलने लगे। कुछ समय बाद सेवामुक्त किए गए सैनिकों और वाईएमसीए के सदस्यों ने यूरोपीय साथियों को इस खेल के नियम सिखाए, जिसके बाद इस खेल की लोकप्रियता में तेजी देखी गई। 1904 तक यह खेल इतना मशहूर हो गया कि प्रदर्शनी खेल के तौर पर ओलंपिक में शामिल किया गया। 1940 के दशक में टीवी प्रसारण ने इस खेल की पहुंच बढ़ा दी।

नेशनल बास्केटबॉल लीग (एनबीएल) की स्थापना 1937 में हुई। इसके बाद 1946 में बास्केटबॉल एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (बीएए) की स्थापना हुई। साल 1949 में दोनों का विलय हुआ और यह नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) बनी।

पुरुषों की प्रतियोगिता को औपचारिक रूप 1936 बर्लिन ओलंपिक गेम्स में दिया गया। 1976 मॉन्ट्रियल ओलंपिक में महिलाओं की बास्केटबॉल प्रतियोगिता भी शुरू हुई।

1967 में अमेरिकन बास्केटबॉल एसोसिएशन (एबीए) का गठन हुआ, जिसने एनबीए के वर्चस्व को चुनौती दी। आखिरकार, 1976 में दोनों ने हाथ मिलाया और नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन को मजबूत किया। हालांकि, एबीए ने इस खेल में थ्री-प्वाइंट लाइन की शुरुआत करते हुए अपनी छाप छोड़ी।

इस खेल के विकसित रूप '3-ऑन-3' बास्केटबॉल ने 2020 टोक्यो में ओलंपिक में अपनी पहचान बनाई। तीव्र और एक्शन से भरपूर संस्करण अब दुनिया भर में खेला जाता है।

अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल फेडरेशन के दिशानिर्देशों के अनुसार, बास्केटबॉल एक आयताकार कोर्ट पर खेला जाता है, जिसकी लंबाई 28 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर निर्धारित होती है। कोर्ट की लंबाई निर्धारित करने वाली रेखा को 'साइड लाइन' कहा जाता है, जबकि कोर्ट की चौड़ाई को निर्धारित करने वाली रेखा को 'एंड लाइन' या 'बेस लाइन' कहा जाता है।

कोर्ट को दो समान हिस्सों में बांटा जाता है। दोनों छोर के मध्य बिंदुओं पर दो गोलाकार टोकरी, जिन्हें 'हूप्स' के नाम से जाना जाता है कोर्ट से 10 फीट ऊपर मौजूद होते हैं। बास्केट के रिम का व्यास 46 सेंटीमीटर होता है, जिसके साथ एक खुला नेट लगा होता है।

हूप्स के केंद्र से 6.75 मीटर की दूरी पर तीन बिंदु वाला अर्ध-वृत्त बनाया जाता है। इस गोले के अंदर एक आयताकार क्षेत्र (5.8 मीटर x 4.9 मीटर) होता है। यह आधार रेखा से शुरू होता है, जिसे 'की एरिया' या 'रिस्ट्रिक्टेड एरिया' भी कहा जाता है।

कोर्ट के अंत की लाइन के समानांतर प्रतिबंधित क्षेत्र का बाहरी किनारा 'फ्री-थ्रो लाइन' कहलाता है। इस लाइन के बाहरी हिस्से पर 3.6 मीटर व्यास का अर्ध-वृत्त होता है, जिसे 'फ्री-थ्रो सर्कल' कहा जाता है।

एक अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल मैच में 10 मिनट के चार क्वार्टर होते हैं। मुकाबले के दौरान कोर्ट पर प्रत्येक टीम की तरफ से 5 खिलाड़ी मौजूद होते हैं। हालांकि, पूरी टीम में 12 से 15 खिलाड़ी हो सकते हैं, जिनमें सब्स्टीट्यूट खिलाड़ी शामिल होते हैं।

खिलाड़ी गेंद को अपने हाथों से नियंत्रित करते हैं। इस दौरान 'ड्रिब्लिंग' के जरिए गेंद को आगे बढ़ाया जाता है। अगर कोई खिलाड़ी ड्रिब्लिंग करना रोक देता है, तो उसे गेंद को पास करना होगा या शूट करना होगा।

अगर कोई खिलाड़ी 'ट्रैवलिंग नियम' का उल्लंघन करता है, तो टर्नओवर जारी किया जाता है। अगर कोई गेंद किसी खिलाड़ी के पजेशन में है, तो उसे सीमा रेखा के अंदर ही रहना होता है। इससे बाहर जाने पर टर्नओवर जारी किया जाता है। अगर डिफेंडर गेंद छीनने के इरादे के बिना विपक्षी टीम के खिलाड़ी के शारीरिक संपर्क में आता है, तो रुकावट के लिए 'फाउल' माना जाता है।

गोल कहां से शूट किया गया, इस आधार पर अलग-अलग अंक दिए जाते हैं। आर्क के अंदर से दागे गए गोल के लिए 2 प्वाइंट्स दिए जाते हैं, जबकि इससे बाहर से किए गए गोल के लिए 3 अंक मिलते हैं। फ्री थ्रो के जरिए 1 अंक मिलता है।

--आईएएनएस

आरएसजी/एबीएम