नागपुर, 4 दिसंबर (आईएएनएस)। 'अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस' पर वन्य प्राणी विशेषज्ञ और डॉक्टर सुनील बाविस्कर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई 'चीता पुनर्वास' की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में, भारत से चीते गायब हो गए थे। अब हमारे प्रधानमंत्री ने उन्हें फिर से लाने के लिए एक अच्छी पहल की है।
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट और डॉक्टर, सुनील बाविस्कर ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि 1980 के दशक में, भारत से चीते गायब हो गए थे। अब, हमारे प्रधानमंत्री ने उन्हें फिर से लाने के लिए एक अच्छी पहल की है। भारत की बायोडायवर्सिटी के हिसाब से लाए गए चीतों की संख्या बढ़ रही है। पहले, चीते यहां घास के मैदानों और सही जगहों पर खूब फलते-फूलते थे। इन परिस्थितियों में चीतों का विकास हो पाया और नैसर्गिक आवास में अगर चीते जीते हैं तो निश्चित रूप से यह अच्छी पहल है। चीते तीन से चार की संख्या में पैदा होते हैं। इसके बाद प्राकृतिक आवास में चीते 50 प्रतिशत तक ही बड़े हो पाते हैं।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई 'चीता पुनर्वास' की प्रशंसा की। विशेषज्ञों का कहना है कि अफ्रीकी चीतों को भारत में दोबारा बसाने की पहल ने देश में वन्यजीव संरक्षण को नई दिशा दी है।
सुनील बाविस्कर ने कहा कि अभी, एक ब्रीडिंग सेंटर बनाया गया है और मेरे हिसाब से, शुरुआती दौर में इसने काफी अच्छा काम किया है। भविष्य में, अगर ब्रीडिंग को बढ़ाना है, तो ब्लडलाइन को एडजस्ट करके या सेंटर के तरीके को बदलकर प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जा सकता है। इस शुरुआती काम के अच्छे नतीजे दिख रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पुनर्वास के चलते कूनो में चीतों के लिए सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया आवास दुनिया के महत्वपूर्ण संरक्षण मॉडलों में शामिल किया जा रहा है। एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि पिछले दो वर्षों में निगरानी, प्रबंधन और संरक्षण ढांचे को मजबूत करने से परियोजना के शुरुआती परिणाम उत्साहजनक रहे हैं।
वन्यजीव डॉक्टर और विशेषज्ञ ने भरोसा जताया कि निरंतर प्रयासों से आने वाले समय में चीतों की संख्या को स्थिर और सुरक्षित विकसित किया जा सकेगा। अगर चीतों को मानव क्षेत्रों से दूर रखा जाए तो यह पहल तभी सफल हो सकती है।
--आईएएनएस
एएसएच/एबीएम