अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह, कारीगरों की रचनात्मक दुनिया का जश्न

अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह 2025, कारीगरों की रचनात्मक दुनिया का जश्न

नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत की हस्तशिल्प परंपरा इतनी विविध और समृद्ध है कि हर किसी को अपना दीवाना बना सकती है। मध्य प्रदेश की चंदेरी साड़ियों की बारीक बुनाई, पश्चिम बंगाल के जटिल कांथा काम, ओडिशा के महीन तारकासी (चांदी के धागों) के काम और जयपुर की खूबसूरत नीली मिट्टी के बर्तन, ये सभी भारत के कारीगरों की कला और हुनर की जीवंत मिसाल हैं।

इन कलाओं की खासियत सिर्फ उनकी सुंदरता में ही नहीं है, बल्कि उनमें सदियों पुरानी हमारी सांस्कृतिक परंपराएं और लोक-इतिहास भी छिपा है। इन्हीं विरासतों का जश्न मनाने के लिए हर साल 8 से 14 दिसंबर तक पूरे देश में अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह मनाया जाता है। यह सप्ताह कारीगरों की मेहनत, लगन और हुनर को सलाम करने का एक बड़ा मौका होता है।

यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है, जहां कारीगरों को अपनी पहचान बनाने का अवसर मिलता है। कई युवा कलाकार, जिनके पास हुनर है, लेकिन मंच नहीं, वे भी इस सप्ताह के दौरान सामने आते हैं। लोग उनकी कला देखते हैं, खरीदारी करते हैं, उनसे जुड़ते हैं और यही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

सरकार भी इस क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। इसी कड़ी में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 9 दिसंबर को वर्ष 2023 और 2024 के राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। यह समारोह कारीगरों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू खुद इन असाधारण शिल्पकारों को सम्मानित करेंगी। समारोह में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और राज्यमंत्री पबित्रा मार्गेरिटा भी मौजूद रहेंगे।

इन पुरस्कारों का इतिहास भी काफी पुराना और सम्मानजनक है। 1965 में शुरू हुए राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार उन कारीगरों को दिए जाते हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है। वहीं, वर्ष 2002 में शुरू किए गए ‘शिल्प गुरु पुरस्कार’ भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र में सबसे बड़ा सम्मान माने जाते हैं। यह उन गुरुओं को दिया जाता है, जिनकी कला न सिर्फ अद्भुत होती है, बल्कि जो आने वाली पीढ़ियों को भी यह कला सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हस्तशिल्प सप्ताह के दौरान पूरे देश में तरह-तरह की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जैसे शिल्प प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं, पैनल चर्चाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कारीगरों के कौशल बढ़ाने वाले कार्यक्रम और कई तरह की आउटरीच पहलें। इन कार्यक्रमों की वजह से लोगों में हस्तशिल्प के प्रति जागरूकता बढ़ती है और कारीगरों को बेहतर बाजार और नए ग्राहक मिलते हैं।

हस्तशिल्प क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था और पहचान दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह न सिर्फ हमारी सांस्कृतिक जड़ों को जीवित रखता है बल्कि लाखों लोगों की आजीविका का आधार भी है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में। कई परिवार पीढ़ियों से इस कला को संजोए हुए हैं और यह उनकी आय का मुख्य स्रोत है। इसके अलावा भारत की हस्तशिल्प वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी खूब लोकप्रिय हैं, जिससे देश की निर्यात आय में अच्छा योगदान मिलता है।

वस्त्र मंत्रालय लगातार यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि कारीगरों को सही मंच, बेहतर प्रशिक्षण, आधुनिक तकनीक, आर्थिक मदद और घरेलू तथा विदेशी बाजारों में उचित पहुंच मिले। सरकार चाहती है कि भारत की पारंपरिक कलाएं सिर्फ बची ही न रहें, बल्कि नई दुनिया में और भी तरक्की करें।

राष्ट्रीय हस्तशिल्प सप्ताह हमें यह याद दिलाता है कि असली भारत सिर्फ शहरों और बड़ी इमारतों में नहीं, बल्कि उन कारीगरों के हाथों में बसता है जो अपनी कला से हमारे इतिहास और संस्कृति को जीवित रखते हैं। उनकी प्रतिभा, धैर्य और रचनात्मकता ही भारत को दुनिया में खास बनाती हैं।

--आईएएनएस

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