‘अब नाम नहीं काम का काएल है जमाना...’, 'श्रीमद्भगवद्गीता' को उर्दू में जीवंत करने वाले शायर अनवर जलालपुरी

‘अब नाम नहीं काम का काएल है जमाना...’, 'श्रीमद्भगवद्गीता' को उर्दू में जीवंत करने वाले शायर अनवर जलालपुरी

नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। शायरी वह कला है, जो अल्फाजों के जादू से दिलों को जोड़ती है और आत्मा को सुकून पहुंचाती है। इस कला के उस्ताद थे अनवर जलालपुरी, जिन्होंने अपनी शायरी से उर्दू साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी शायरी में प्रेम, दर्शन और देशभक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

"अब नाम नहीं काम का काएल है जमाना, अब नाम किसी शख्स का रावन न मिलेगा।" यह शेर बताता है कि आज का दौर कर्म की कद्र करता है, न कि खोखले नाम की। अनवर जलालपुरी की रचनाएं और उनके विचार आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में प्रेरणा का दीप जलाते हैं।

6 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जलालपुर में जन्मे अनवर ने अपने शब्दों से न केवल मुशायरों को रोशन किया, बल्कि श्रीमद्भगवद्गीता के उर्दू अनुवाद जैसे अनूठे काम से सांस्कृतिक एकता का संदेश भी दिया। उनकी शायरी में प्रेम, दर्शन और देशभक्ति की मिठास झलकती है, जिसने उन्हें 'यश भारती' (2015) और मरणोपरांत 'पद्म श्री' (2018) जैसे सम्मानों का हकदार बनाया।

एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए अनवर जलालपुरी की प्रतिभा बचपन से ही नजर आने लगी थी। उन्होंने न केवल उर्दू शायरी में अपनी पहचान बनाई, बल्कि अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में भी नरेन्द्रदेव इंटर कॉलेज में अपनी सेवाएं दीं। उनके साहित्यिक योगदान में सबसे उल्लेखनीय काम श्रीमद्भगवद्गीता का उर्दू में काव्यात्मक अनुवाद है, जिसे 'उर्दू शायरी में गीता' के नाम से जाना जाता है। इस अनुवाद में उन्होंने गीता के 700 श्लोकों को शेरों में पिरोया, जो सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया। इसके अलावा, उन्होंने उमर खय्याम की रुबाइयों और रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' का भी उर्दू में अनुवाद किया।

जलालपुरी के शब्दों में ऐसा जादू था जो मुशायरों को न केवल जीवंत बनाता था बल्कि लोगों के दिलों तक भी पहुंचता था। उनका लिखा, ‘मैं जा रहा हूं, मेरा इंतेजार मत करना, मेरे लिए कभी भी दिल सोगवार मत करना’ हो या फिर ‘कोई पूछेगा जिस दिन वाकई ये जिंदगी क्या है, जमीं से एक मुट्ठी खाक ले कर हम उड़ा देंगे’ हो। उनकी शायरी में सादगी और गहराई का अद्भुत मेल दिखता था।

अनवर जलालपुरी ने विशाल भारद्वाज की फिल्म 'डेढ़ इश्किया' में भी मुशायरा पढ़ा, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी। मुशायरों की जान माने जाने वाले जलालपुरी ने 2 जनवरी 2018 को लखनऊ में 70 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। हालांकि, उनकी शायरी और विचार आज भी युवा शायरों को प्रेरणा देते हैं।

--आईएएनएस

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