नई दिल्ली, 1 दिसंबर (आईएएनएस)। आज के डिजिटल युग में भला कंप्यूटर से कौन रूबरू नहीं होगा? इस पर हर हाथ खिटपिट करता है। शिक्षा, मनोरंजन, बिजनेस, या स्वास्थ्य, आज कंप्यूटर के बिना ये काम असंभव हैं। की-बोर्ड पर उंगलियां चलती हैं और स्क्रीन चमक उठता है। ये जादू ही तो है।
ठीक यही जादू 24 साल पहले 2 दिसंबर 2001 को भारतीय कंपनी एनआईआईटी ने पूरे देश को दिखाया था, जब उसने अपनी 20वीं सालगिरह पर 'विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस' की शुरुआत की थी। उस दिन दिल्ली में संसद भवन के सेंट्रल हॉल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने सांसदों को कंप्यूटर चलाना सिखाया गया था। उस दिन देश के नीति-निर्माताओं ने पहली बार माउस पकड़ा था।
एनआईआईटी ने ये दिन इसलिए शुरू किया, क्योंकि एक सर्वे ने चौंकाने वाला सच बताया था। दुनिया भर में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले लोगों में ज्यादातर पुरुष थे। महिलाएं और बच्चे, खासकर ग्रामीण इलाकों के निवासी, डिजिटल दुनिया से काफी दूर थे।
आज के समय में देश के साथ दुनिया डिजिटल छलांग लगा रही है, तब ये दिन और भी खास हो जाता है। एक क्लिक से सरकारी योजनाएं घर पहुंच रही हैं; गांव हो या शहर, लोग ऑनलाइन बिजनेस कर रहे हैं। स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई भी हो रही है। बच्चे यूट्यूब पर पढ़ रहे हैं।
कंप्यूटर साक्षरता दिवस का उद्देश्य बड़ा है। आज के समय में भी लाखों लोग ऐसे हैं जो 'लॉग-इन' शब्द से अनजान हैं। विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस इन्हीं लोगों को जागरूक करता है।
विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस दुनिया के उस बड़े हिस्से तक कंप्यूटर की रोशनी पहुंचाने की कोशिश है, जो इससे अंजान हैं। इस दिन मुफ्त वर्कशॉप, कैंप और क्लास के जरिए लोगों को कंप्यूटर चलाना सिखाया जाता है, ताकि उनका डर दूर हो और दिलचस्पी जगे। ट्रेनर का फोकस इस पर होता है कि वह सामने वाले को बता सकें कि बस एक क्लिक से जिंदगी बदल सकती है, यही इस दिन का असली मकसद है। कंप्यूटर सीखने पर बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं।
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