नासिक, 11 सितंबर (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित त्र्यंबक क्षेत्र एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है, जहां पर भगवान शिव का प्रसिद्ध त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थित है। यह मंदिर पवित्र गोदावरी नदी के निकट ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है। पितृपक्ष के दौरान यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु नारायण नागबली पूजा कराने आते हैं।
मान्यता है कि इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इसमें ब्राह्मणों द्वारा विशेष विधि से पिंड दान और श्राद्ध किया जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में तीन मुख हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में पूजे जाते हैं।
हैरानी की बात यह है कि शिवलिंग में हमेशा गोदावरी का पानी आता रहता है। दर्शन के अलावा यहां बड़ी संख्या में लोग नारायण नागबली पूजा करवाने के लिए भी आते हैं।
नारायण नागबली पूजा एक तीन दिवसीय हिंदू अनुष्ठान है, जो उन आत्माओं की शांति और मुक्ति के लिए किया जाता है, जिनके परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे दुर्घटना, आत्महत्या या गंभीर बीमारी से।
यह अनुष्ठान मृत व्यक्ति की अधूरी इच्छाओं को भी पूरा करने में मदद करता है, जिससे उन्हें हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह पूजा नागों (सर्पों) की हत्या, चाहे वह अनजाने में ही क्यों न हुई हो, के दोष से भी मुक्ति दिलाने के लिए करवाई जाती है। इसमें सर्प की मूर्ति बनाकर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है, जिससे नाग दोष समाप्त हो।
नारायण नागबली पूजा तीन दिनों तक चलती है, जिसमें पहले नारायण बली पूजा होती है, जो पितरों की आत्मा की शांति के लिए की जाती है और दूसरी नागबली, जो सर्प दोष से मुक्ति के लिए की जाती है।
अमावस्या और पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) में यह पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। हालांकि, पूरे वर्ष में यह पूजा कभी भी कराई जा सकती है।
त्र्यंबकेश्वर में कई अनुभवी और प्रमाणित पुरोहित हैं, जो यह पूजा विधिपूर्वक कराते हैं। इस पूजा में गेहूं के आटे से बने सांप के शरीर का उपयोग किया जाता है, जिस पर मंत्रों का जाप करते हुए अंतिम संस्कार किया जाता है। पूजा के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
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