नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। “मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती”। अभिनेता मनोज कुमार की फिल्म उपकार का यह गीत आज भी लोगों की जुबान से उतरा नहीं है। देशभक्ति की भावना को जगाने वाला यह गीत कई दशकों से हमारे साथ आज भी जिंदा है। लेकिन, इस गीत को लिखने वाले मशहूर गीतकार गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा हमारे बीच नहीं हैं।
7 अगस्त 2009 को उनका निधन हुआ। देहांत के 15 साल बाद लोग उनके द्वारा लिखे गीतों को सुनकर उन्हें आज भी याद करते हैं। गुलशन बावरा ने अपने करियर में एक से बढ़कर एक गीत लिखे। लेकिन, एक गीत जो उनके दिल के बेहद करीब था उसके बोल हैं -- “चांदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया। एक धनवान की बेटी ने निर्धन का दामन छोड़ दिया”। गुलशन बावरा ने फिल्म जंजीर में “यारी है ईमान मेरा यार मेरी दोस्ती” गीते के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता था।
पाकिस्तान के शेखुपुर में 12 अप्रैल 1937 को गुलशन बावरा का जन्म हुआ। बंटवारे के बाद वह इंडिया आए। यहां उन्हें वेस्टर्न रेलवे में क्लर्क की जॉब मिल गई। 1955 में मुंबई आने के बाद उनकी चाहत हिन्दी फिल्मों में गीत लिखने की थी। कुछ समय संघर्ष भी किया। 23 अगस्त 1958 को फिल्म चंद्रसेना के लिए संगीतकार कल्याण-आनंद ने उन्हें मौका दिया। इस फिल्म के लिए उन्होंने अपना पहली गीत लिखा। फिल्म सट्टा बाजार के दौरान उनके दो गीतों को सुनकर डिस्ट्रीब्यूटर शांति भाई पटेल ने उन्हें गुलशन बावरा का नाम दिया।
गुलशन बावरा के करियर में उनके 237 गाने मार्केट में आए। उन्होंने लक्ष्मी कांत प्यारेलाल, अनु मलिक के साथ काम किया। उनकी गहरी दोस्ती आरडी बर्मन के साथ थी। मोहम्मद रफी के निधन के दौरान वह बहुत दुखी हो गए थे। फिल्म “जंजीर” में एक गाना था, दीवाने है दीवानों को न घर चाहिए, इस गीत के लिए मोहम्मद रफी ने टेक दे दिया था, जिसे संगीतकार द्वारा ओके भी कर दिया गया। रफी साहब के साथ इस गीत में लता मंगेशकर भी थीं। उनसे इस गाने में एक गलती हो गई थी, वह चाहती थीं कि एक टेक और हो जाए।
इधर, मोहम्मद रफी रिकॉर्डिंग स्टूडियो से निकलकर अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे थे, तभी गुलशन बावरा उनके पास पहुंचे और बोले, सर, आपको पता है यह गाना स्क्रीन पर कौन गाने वाला है। उन्होंने कहा कौन दिलीप कुमार? गुलशन बावरा ने कहा, दिलीप कुमार नहीं, मै स्क्रीन पर गा रहा हूं। इस पर वह दोबारा से टेक देने के लिए आए। खास बात यह थी उन दिनों रोजा के दौरान मशहूर गायक मोहम्मद रफी भी गीतकार गुलशन बावरा को ना नहीं कह पाए।
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