एससी-एसटी सीटों से आए परिणाम ने चौंकाया, नहीं मिली भाजपा को अपेक्षित कामयाबी

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi and BJP National President JP Nadda greet supporters upon their arrival for a meeting at the party headquarters as the party leads in the Lok Sabha elections, in New Delhi, Tuesday, June 4, 2024. (IANS)

नई दिल्ली, 5 जून (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया। एक तरफ इंडिया गठबंधन को इस चुनाव में फिर से संजीवनी मिल गई तो दूसरी तरफ भाजपा नीत एनडीए ने पूर्ण बहुमत का 272 वाला जादुई आंकड़ा भी पार कर लिया। एनडीए के हिस्से में इस बार 292 सीटें आई है।

वहीं, इंडिया गठबंधन के घटक दलों के हिस्से में 234 सीटें और अन्य को 17 सीटें मिली हैं। हालांकि, भाजपा इस लोकसभा चुनाव के बाद भी संसद की सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है और उसने 240 सीटों पर जीत हासिल की है। जो 2019 के मुकाबले 63 सीट कम है।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपने दम पर 303 सीटें मिली थी। ऐसे में यह देखना जरूरी हो गया है कि आखिर भाजपा को किन सीटों पर बड़ा नुकसान हुआ है और जनता की नब्ज टटोलने में भाजपा की तरफ से कहां चूक हो गई।

नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी तो कर लेंगे। लेकिन, भाजपा को इस बात की भी समीक्षा करनी पड़ेगी की हिंदी भाषी राज्यों में इंडिया गठबंधन ने उसकी सीटों में बड़ी सेंध लगाई है और पार्टी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य में लगा है।

दो लोकसभा चुनावों के बाद अब एक बार फिर से देशभर में कहीं ना कहीं जाति फैक्टर की वापसी होती दिखाई दे रही है। वहीं, युवाओं की तरफ से भी यह खास संदेश सभी पार्टियों के लिए निकलकर सामने आ गया है कि उनके लिए रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है।

उत्तर और पूर्व के राज्यों को देखें तो भाजपा जहां सबसे ज्यादा सबल थी, वहां पश्चिम बंगाल में बंगाली की बेटी ममता बनर्जी के महिला कार्ड ने, बिहार में कांग्रेस और राजद की सियासी चाल ने, यूपी में समाजवादी पार्टी के बिछाए सियासी मायाजाल ने और महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी की टूट के कारण मचे सियासी बवाल ने भाजपा को ज्यादा नुकसान पहुंचाया।

राजस्थान में तो भाजपा का 'मंगलसूत्र' और 'राम' वाला बयान भी काम नहीं आया। यहां की जनता ने भी भाजपा को जोर का झटका धीरे से दिया। हालांकि, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने भाजपा की लाज बचा ली।

दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में भाजपा के हिस्से में 50 प्रतिशत से कहीं ज्यादा मत आए।

लोकसभा की 543 सीटों में से 412 सीटें सामान्य, 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इस चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कुल 84 सीटों में से भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन, उसे नुकसान भी इस पर हुआ। इन 84 में से भाजपा के हिस्से में कुल 28 सीटें ही आई। जबकि, 36 सीटें अन्य दलों के हिस्से में आई। कांग्रेस ने 20 और आप ने एक सीट पर जीत दर्ज की।

अनुसूचित जनजाति की 47 सीटों में भी भाजपा के हिस्से में ज्यादा सीटें आई। उसे इसमें से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई। लेकिन, यह 2019 के मुकाबले 6 कम है। इसके बाद कांग्रेस के हिस्से में इसमें से 11 और अन्य के हिस्से में 11 सीटें आई। मतलब साफ है अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर भाजपा को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। इसके साथ ही देशभर में भाजपा के वोट में भी 2019 के मुकाबले कमी आई है।

कुल मिलाकर 131 एससी-एसटी सीटों में से भाजपा के हिस्से में इस बार 53 सीटें आई हैं, 31 कांग्रेस के हिस्से में गई है बाकी अन्य के हिस्से में आई है। जबकि, 2019 में इसमें से 77 सीटें भाजपा और 10 सीटें कांग्रेस को मिली थी। इसके साथ ही जिस अयोध्या के राम मंदिर के नारे के साथ भाजपा चुनाव लड़ रही थी, वह उस सीट पर भी जीत दर्ज नहीं कर पाई।

भाजपा ने हिंदी बेल्ट में ही केवल 67 सीटें अपने हिस्से की गंवा दी, जिन पर 2019 में उसने जीत दर्ज की थी। हालांकि, ओडिशा में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा और दक्षिण में भी भाजपा ने अपने लिए दरवाजे खोले। लेकिन, तमिलनाडु जिस पर भाजपा का फोकस इस बार सबसे ज्यादा था, वहां वह जीत तो दूर की बात अपने लिए जमीन तक नहीं तैयार कर पाई। नॉर्थ-ईस्ट में भी भाजपा को झटका मिला। यहां की 25 सीटों में से भाजपा को 13 और कांग्रेस को 7 सीटों पर जीत मिली।

इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के 7 चरणों में से जिन पांच चरणों में वोटिंग कम हुई वहां एनडीए को 58 सीटों का नुकसान हुआ। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा 6 राज्यों में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही, लेकिन यह प्रदर्शन 2019 के मुकाबले कमजोर था क्योंकि तब भाजपा ने 9 राज्यों में क्लीन स्वीप किया था। लेकिन, इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने 10 राज्यों में अपनी सीटों में बढ़ोतरी की है।

इस सबके बीच एक बार इस चुनाव के उस विषय पर गौर करें जो किसी की नजर में शायद ही हो। लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियों में जिस तरह की भगदड़ मची, उसमें सबसे ज्यादा लोग दूसरी पार्टी को छोड़ भाजपा में शामिल हुए और भाजपा ने इनमें से 56 पर भरोसा दिखाया और 22 ने इसमें से जीत हासिल की। जबकि, कांग्रेस में दूसरे दलों से आए 29 में से 6 ही जीत पाए। सपा में दूसरे दलों से आने वाले 18 में से 10 ने जीत दर्ज की। ओवरऑल देखें तो इस चुनाव में दलबदलू 66% उम्मीदवारों पर जनता ने अपना भरोसा नहीं दिखाया। देशभर के सभी दलों ने दूसरे दलों से आए 127 उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसमें से केवल 43 ही इस चुनाव में जीत का परचम लहरा सके।

इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टियों ने महिला उम्मीदवारों पर भी अपना भरोसा दिखाया। भाजपा ने 69 तो कांग्रेस ने 41 महिलाओं को पार्टी का टिकट दिया। जिसमें भाजपा की 33 महिला और कांग्रेस की 11 महिला उम्मीदवारों ने इस चुनाव में जीत हासिल की। जहां महिलाओं ने ज्यादा संख्या में वोट किया या जहां महिला मतदाताओं में से 60 प्रतिशत से ज्यादा ने वोट किया, ऐसी सीटों पर भाजपा को फायदा मिला।

अब बात शहरी, अर्ध शहरी, ग्रामीण, अर्ध ग्रामीण क्षेत्रों की सीटों की करते हैं। यहां इस बार एनडीए को शहरी क्षेत्र में 37, अर्ध शहरी क्षेत्र में 36, अर्ध ग्रामीण क्षेत्र में 53 और ग्रामीण क्षेत्र में 168 सीटों पर जीत हासिल हुई है। जबकि, 2019 में ये आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा था। वहीं, इंडिया गठबंधन को शहरी क्षेत्र में 16, अर्ध शहरी क्षेत्र में 29, अर्ध ग्रामीण क्षेत्र में 48 और ग्रामीण क्षेत्र में 109 सीटों पर जीत हासिल हुई है, जबकि 2019 के चुनाव में यह आंकड़ा बेहद कम था।

--आईएएनएस

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